सोमवार 15 सितंबर 2025 - 16:00
भारत की धरती हमेशा उलेमा और मुज्तहिदीन का गढ़ रहा है।भारत में वली फक़ीह के प्रतिनिधि

हौज़ा / भारत में वली फक़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. अब्दुलमजीद हकीम इलाही ने क़ुम अलमुकद्देसा में भारतीय छात्रों के साथ विचार-विमर्श की बैठक में कहा कि भारत की धरती बड़े-उलेमा और मुज्तहिदीन का गढ़ रही है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , भारत में वली फक़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. अब्दुलमजीद हकीम इलाही ने क़ुम अल-मुकद्देसा में हौज़ा इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अराफ़ी और भारत में रहबर मुअज़म के पूर्व और वर्तमान प्रतिनिधियों की मौजूदगी में भारतीय छात्रों के साथ एक फिक्री बैठक हुई।

उन्होंने पैगंबर मुहम्मद स.ल.व. और उनके पुत्र इमाम जाफ़र सादिक स.ल. की विलादत पर मुबारकबाद पेश की।उन्होंने भारतीय उलेमा, उपस्थित लोगों और विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं का धन्यवाद करते हुए कहा कि फ़लसफ़ा ने अस्तित्व (वजूद) की तीन प्रकारों को बताया है।

पहली किस्म माद्दी अस्तित्व है, जो सीमित और कमजोर होता है तथा एक समय में केवल एक स्थान पर रह सकता है, जैसे यह दुनिया जहाँ देखने के लिए आंख और चलने के लिए पैर चाहिए।

दूसरी किस्म उजूद मिसाली अस्तित्व है, जो पूरी तरह से मुज्रद नहीं, लेकिन माद्दी समय और स्थान से स्वतंत्र होता है। जैसे सपने में आत्मा का विभिन्न स्थानों पर होना कभी लखनऊ, कभी मुंबई, कभी नजफ़। मरने के बाद भी आत्मा इसी आदर्श दुनिया में रहती है।

तीसरी किस्म अक़्ली अस्तित्व है, जो न समय और न स्थान से बंधा होता है। यह पूर्णता का प्रतीक है और किसी क्रिया के लिए किसी उपकरण या माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। इसी तरह का अस्तित्व सैय्यदुश्शोहदा जैसे अवलिया का होता है।

डॉ. हकीम इलाही ने कहा कि यदि इंसान सभी सीमाओं को तोड़कर अपने अस्तित्व को ईश्वर के अस्तित्व से जोड़ दे, तो वह भी विकास के ज़रिए अक़्ली और व्यापक अस्तित्व तक पहुँच सकता है, जो समय और स्थान से परे है।

उन्होंने हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मेंहदी महदवी पूर की सेवाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने पिछले 15 वर्षों में डेढ़ सौ वर्षों के बराबर उल्लेखनीय कार्य किए हैं और आशा जताई कि हम सब भी उनकी राह पर चलने की क्षमता पाएंगे।

उन्होंने भारत के इल्मी गौरव का उल्लेख करते हुए कहा कि जब साहिब जवाहर ने अपनी मशहूर किताब "जवाहर अल-कलाम" की रचना की, तो इसकी तश्रीह और प्रकाशन की अनुमति के लिए भारत भेजा गया था। भारत में ऐसे महान मुज्तहिदीन और उलेमा मौजूद थे जिनकी कब्रें आज भी "कब्रिस्तान ग़ुफ़रान मआब" में मौजूद हैं। लगभग 50 मुज्तहिदीन थे जिनका मुस्लिम जगत में गहरा इल्मी प्रभाव था।

डॉ. हकीम इलाही ने कहा कि भारत का धार्मिक और इल्मी इतिहास अत्यंत शानदार रहा है। बड़े बड़े हौज़ात इल्मिया और उनकी इमारतों के नक़्शे-ओ-निगार देखकर उसकी महानता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यहाँ तक कि कुछ विषयों पर, जैसे यह बहस कि क्या शब-ए-आशूरा को इमाम हुसैनؑ के खीमे में पानी था या नहीं, भारत में ढाई सौ से अधिक किताबें लिखी गईं।

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